भारत एक ऐसा देश है जो अपनी संस्कृति, परंपरा और विविधताओं के लिए जाना जाता है। हम आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न हैं, वैज्ञानिक रूप से प्रगतिशील हैं और सामाजिक रूप से भावनात्मक भी हैं। लेकिन जब बात नागरिक भावना (Civic Sense) की आती है, तो हम अक्सर असफल दिखाई देते हैं।
नागरिक भावना का अर्थ केवल कानून का पालन करना या दंड से बचना नहीं है। इसका अर्थ है — समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना, सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता और व्यवस्था बनाए रखना, और दूसरों की सुविधाओं का सम्मान करना। यह हर नागरिक का नैतिक कर्तव्य है।
हमारे देश में नागरिक भावना का अर्थ अक्सर “नियमों का पालन” या “अनुशासन में बंधना” समझा जाता है, लेकिन यह सोच बहुत सीमित है। नागरिक भावना का मतलब है एक ऐसी समझ विकसित करना जिससे सड़क, पार्क, बस स्टॉप, सरकारी दफ्तर — सब जगह हम “किसी और” नहीं, “अपने देश” के लिए सोचें।
दुर्भाग्य से, भारत में हम अपने घरों को साफ रखते हैं पर सड़क पर कचरा फेंकने में संकोच नहीं करते। ट्रैफिक नियमों की अनदेखी करते हैं, रेड लाइट पार कर देते हैं। सार्वजनिक संपत्ति को अपनी मानने के बजाय, हम उसे सरकार का मानकर उपेक्षा करते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी भूल है।
हम अक्सर कहते हैं — *“एक आदमी से क्या फर्क पड़ेगा?”* लेकिन यही सोच सबसे बड़ा नुकसान करती है। जब हर व्यक्ति अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाता है, तो समाज का पहला स्तंभ ही कमजोर पड़ जाता है। नागरिक भावना का पहला सबक है — **“अपना कार्य ईमानदारी से करना और दूसरों के अधिकार का सम्मान करना।”**
भारत देश में सहृदयता, मददगार भावना और संस्कार तो हैं, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर वही संवेदनशीलता दिखाई नहीं देती। घर में हम स्वच्छता, संयम और अनुशासन सिखाते हैं, लेकिन बाहर आते ही इन मूल्यों को भूल जाते हैं।
कोई व्यक्ति जो अपने घर में कचरा नहीं फैलाता, वही सड़क पर थूक देता है। वही नागरिक जो दूसरों को ट्रैफिक नियम सिखाता है, खुद हेलमेट पहनने में लापरवाही करता है। यह समस्या जानकारी की नहीं, बल्कि व्यवहार की है।
हमारी नागरिकता अक्सर कागजों पर दिखती है — आधार या राशन कार्ड में। लेकिन यह उस सोच में नहीं झलकती जहाँ भारत को सबसे अधिक सुधार की आवश्यकता है।
अगर हम जर्मनी, फ़िनलैंड या अन्य यूरोपीय देशों की बात करें, तो वहाँ नागरिक भावना जीवनशैली का हिस्सा है।
जर्मनी में लोग कानूनों का पालन डर से नहीं, बल्कि आदत से करते हैं। बचपन से सिखाया जाता है कि सार्वजनिक स्थानों का सम्मान करना उनका नैतिक दायित्व है।
फ़िनलैंड में नागरिक सार्वजनिक संपत्ति को अपनी संपत्ति मानते हैं। वहाँ के पार्क, सड़कें और वाहन हमेशा स्वच्छ रहते हैं क्योंकि हर व्यक्ति खुद जिम्मेदार है।
जिन देशों में नागरिक भावना गहरी है, वहाँ नागरिक, शासन और संस्कृति — तीनों का सामंजस्य दिखाई देता है।
अब भारत को आवश्यकता है नागरिक पुनर्जागरण की — एक ऐसी सोच की जो बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी यह सिखाए कि देश के विकास की शुरुआत उनके अपने व्यवहार से होती है।
विद्यालयों में नागरिक शिक्षा केवल एक अध्याय न रह जाए, बल्कि जीवन के मूल्य के रूप में सिखाई जाए। बच्चों को यह समझाया जाए कि सार्वजनिक स्थलों की सफाई, ट्रैफिक नियमों का पालन और दूसरों की सुविधा का सम्मान केवल नियम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारीहैं।
सरकार कानून बना सकती है, पर बदलाव तब आएगा जब नागरिक खुद जिम्मेदारी समझेंगे। यह “सरकार का काम” नहीं, बल्कि “हम सबका कर्तव्य” है।
सच्ची नागरिक भावना डर या दंड से नहीं आती — वह आती है भीतर की समझ, अनुशासन और देश के प्रति सम्मान से।
किसी देश की प्रगति उसकी इमारतों या GDP से नहीं आँकी जाती, बल्कि इस बात से होती है कि उसके नागरिक बिना निगरानी के कैसा व्यवहार करते हैं।
अगर हम सभी अपने छोटे-छोटे कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाएँ — सड़क पर सफाई रखें, ट्रैफिक नियमों का पालन करें, सार्वजनिक संपत्ति को अपनी समझें — तो हमारा भारत न केवल “विकसित” कहलाएगा, बल्कि “सभ्य समाज” का आदर्श उदाहरण बनेगा।
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| लेखिका: श्रुति द्विवेदी प्रधानाचार्या, THS इंटरनेशनल स्कूल, महानगर, लखनऊ |



