कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence – AI) हमारे काम करने, नियुक्ति करने और मूल्य सृजन के तरीकों को पूरी तरह बदल रही है। कारखानों में स्वचालन (Automation) से लेकर कार्यालयों में एआई सहायक (AI Assistants) तक, तकनीक अब केवल एक साधन नहीं रही, बल्कि यह एक सहकर्मी, विश्लेषक और निर्णय लेने वाली बनती जा रही है।
एआई केवल मानव श्रम को प्रतिस्थापित (replace) नहीं कर रही, बल्कि रोज़गार की भूमिकाओं को नया आकार दे रही है। डेटा एंट्री, विनिर्माण (manufacturing), ग्राहक सहायता और लॉजिस्टिक्स जैसे नियमित और दोहराए जाने वाले कार्य अब तेजी से स्वचालित हो रहे हैं। एआई के उपयोग से कई प्रक्रियाएँ अधिक तेज़, समझदार और समय-बचाने वाली बन गई हैं। फिर भी प्रश्न बना हुआ है , “क्या एआई इंसानों की जगह ले लेगी?”
वास्तविकता यह है कि एआई कुछ मानवीय क्षमताओं की नकल नहीं कर सकती, जैसे रचनात्मकता (creativity), भावनात्मक बुद्धिमत्ता (emotional intelligence), नेतृत्व (leadership), सहानुभूति (empathy) और नैतिक निर्णय (ethical judgment)। ये गुण पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान हो गए हैं। इसी के साथ, एआई ने नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं , जैसे एआई नैतिकता, डेटा विश्लेषण, साइबर सुरक्षा, रोबोटिक्स रखरखाव और डिजिटल क्रिएटिविटी के क्षेत्र।
भविष्य का कार्यक्षेत्र मनुष्य और मशीन के सहयोग पर आधारित होगा, जहाँ एआई डेटा-आधारित कार्यों को संभालेगी, वहीं मनुष्य संदर्भ, करुणा और आलोचनात्मक सोच प्रदान करेगा।
आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है अनुकूलन (Adaptation)। समाज को पुनः कौशल विकास (Reskilling), डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy) और आजीवन शिक्षण (Lifelong Learning) में निवेश करना होगा। सरकारों, शिक्षकों और उद्योगों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एआई मानव क्षमता को प्रतिस्थापित नहीं, बल्कि सशक्त करे।
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| डॉ. अमृता यादव, सहायक प्रोफेसर, साइबर सुरक्षा, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविधालय, उत्तर प्रदेश परिसर, लखनऊ |


