बाराबंकी जिला धार्मिक व पौराणिक स्थलों के आधार पर अपना विशेष महत्व रखता है। यहां महाभारत कालीन धार्मिक स्थलों के प्रमाण मिलते हैं। महादेवा में स्थित शिव मंदिर, किन्तूर में कुंतेश्वर व पारिजात वृक्ष, यह सब पांडवों द्वारा स्थापित बताए जाते हैं। कहा जाता है कि जब पांडव अपनी माता कुंती के साथ हस्तिनापुर से अज्ञातवास के लिए निकले तो वह सभी लोग कुछ समय के लिए इस वन क्षेत्र में आश्रय लेने के लिए रुके थे । उस समय इस वन क्षेत्र को वाराह वन के नाम से जानते थे, जो कालांतर में बाराबंकी हुआ। महादेवा में पांडव द्वारा शिव मंदिर स्थापित किया गया था जो आज एक पवित्र स्थान है। यहां प्रत्येक वर्ष शिव मेला लगता है। यहां दूर- दूर से शिव भक्त गंगा जल चढ़ाने आते हैं। पांडव की माता कुंती के नाम से कुंतापुर या कुंतेश्वर था जो अब किंतूर नाम से प्रसिद्ध है । यहीं पर पारिजात वृक्ष है। यहां माता कुंती शिव जी की आराधना किया करती थी । यहीं पर पारिजात वृक्ष है। कहते हैं कि पारिजात वृक्ष अर्जुन द्वारा स्वर्ग से लाया गया था, इसके फूलों से माता कुंती भगवान शिव का अभिशेक किया करती थी। यह सारे प्रमाण महाभारत काल के धार्मिक धरोहर हैं। लोकमत है कि बाराबंकी में ही स्थित सतरिख प्राचीन कालखंड में सप्त ऋषि आश्रम हुआ करता था,जो अवध राज्य का गुरुकुल था। सिद्धौर में भगवान शिव का मंदिर सिद्धेश्वर नाम से स्थापित है। कोटवा धाम मे संत शिरोमणि बाबा जगजीवन दास का स्थान है। जो अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। इन सभी पावन और पवित्र धर्म स्थलों पर प्रत्येक वर्ष धार्मिक उत्सवों का आयोजन होता रहता है। स्थानीय व सुदूर शहरो से भक्तों का आना जाना रहता है।
इन्हीं ऐतिहासिक धार्मिक स्थानों में एक स्थान बाराबंकी जिला के थाना जहांगीराबाद क्षेत्र में रामपुर धाम है। यहां रमता राम चतुर्भुजी मंदिर सैकड़ो एकड़ के विशाल प्रांगण में स्थित है। इस मंदिर का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है । अतीत में कुछ परिस्थितियां रही होंगी जो जनमानस के स्मृति पटल पर मंदिर की भव्यता व विशालता की स्मृतियां धूमिल होती गई।
मंदिर के अवशेष, जर्जर बावली और गुफाओं की जांच से पता चला है कि इस चतुर्भुज मंदिर का निर्माण काल का कई सौ साल पुराना है। सैकड़ों एकड़ में फैला विशाल चतुर्भुज मंदिर का परिसर इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि प्राचीन समय में यह कितना प्रतिष्ठित और संपन्न रहा होगा। कहते है कि रामपुर धाम में स्थापित चतुर्भुज मंदिर का विस्तार सुदूर प्रांतों तक फैला था। इस चतुर्भुजी मंदिर से लगभग 360 मठ या गद्दीया संचालित होती थी। इस विशाल मंदिर की शाखाएं भारत के कोने कोने में फैली थी। रमता राम चतुर्भुजी मंदिर चतुर्भुज साम्राज्य का केंद्र बिंदु था।
गोस्वामी तुलसी दास ने भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप का वर्णन श्री रामचरित मानस की चौपाइयों में भी किया है। रामचरितमानस के बालकांड में भगवान विष्णु अपने चारों हाथों मे आयुध लेकर माता कौशल्या के समक्ष्य प्रगट हुए, लेकिन माता के कहने पर अपना चतुर्भुज रूप तज कर शिशु बनकर रोने लगे --- लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा, निज आयुध भुज चारी ।। भूषन वनमाला नयन विशाला, शोभा सिंधु खरारी ।।
और अरण्यकांड में महर्षि अगस्त्य के शिष्य सुतीक्ष्ण मुनि को भगवान राम ने चतुर्भुज रूप में दर्शन दिया। सुतीक्षण मुनि ने जब राम का आगमन सुना तो खुशी से व्याकुल हो कर रास्ते में ही ध्यान लगा कर बैठ गए। भगवान राम ने उन्हें बार-बार जगाया पर वह न उठे। तब भगवान राम ने उनके हृदय में अपने चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन कराया --
मुनिही राम बहु भांति जगावा । जाग न ध्यान जनित सुख पावा ।। भूप रूप तब राम दुआवा । ह्रदय चतुर्भुज रूप दिखावा ।।
रामपुर धाम में हुआ चमत्कार, गूंज उठी जय जय जयकार
ऐसा ही वर्णन इस स्थान पर भी आता है कि भगवान विष्णु ने अपने भक्त का सम्मान रखने के लिए स्वयं भक्त के देह मे प्रवेश कर चतुर्भुज स्वरुप में दर्शन दिए । मान्यता है एक समय की बात है क़ि प्रयागराज से कुंभ स्नान करके साधु महात्मा पैदल चलते चलते इसी आश्रम में पधारे। आश्रम में भंडारे का प्रसाद परोसा जा रहा था तभी अचानक एक ऐसी घटना घटित हुई जिसको सुनकर आप के होश उड़ जायेंगे। किवदंती है की चतुर्भुज मंदिर के संत रमता राम भंडारा प्रसाद परोस रहे थे, अचानक उनकी लंगोटी खुल गई। इसे देखकर साधु संत हंसने लगे और बोले कि अब आप भंडारा कैसे परोसेगे तभी रमता राम महराज ने कहा कि भगवान चर्तुभुज की महिमा अनंत है उन्होंने ही यह लंगोटी खोली है और वे स्वयं इसे बांधेंगे और जय चतुर्भुज, जय चतुर्भुज करते हुए उन्होंने सेवा भाव में ही ध्यान केंद्रित रखा। सेवा भाव में भक्त की तल्लीनता देखकर भगवान चतुर्भुज उनके शरीर में लंगोटी को संभालने के लिए स्वयं समाहित हो गए, और दो हाथ प्रगट किए और अपने परम भक्त की लंगोटी बाँधने लगे। संतों की सेवा प्रभावित नहीं होने दी। ऐसा अलौकिक दृश्य देखकर सभी साधु संत नतमस्तक होकर भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की जय-जयकार करने लगे। इस अलौकिक दृश्य के बाद रमता राम अंतर्ध्यान हो गए। इस दिव्य चमत्कार की घटना के बाद से कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल मेला लगने लगा और लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए यहां दीपक प्रज्वलित करने आने लगे। यहां कि यह मान्यता है कि भगवान चतुर्भुज ने जिस प्रकार रमता राम महराज की लाज बचाई उसी प्रकार प्रत्येक भक्त जो सच्ची श्रद्धा भक्ति से भगवान चतुर्भुज, रमता राम महराज के सम्मुख दीप प्रज्वलित करता है भगवान चतुर्भुज उस भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
संतो का कहना है कि साधु महात्मा प्रयागराज मे एक माह का कुंभ प्रवास करते थे। प्रवास समाप्त होने के उपरांत वह सभी पुनः सिद्धि साधना के लिए तपस्थली नैमिषारण्य के लिए प्रस्थान करते थे। वह सब दिव्य आत्माएं पैदल मार्ग चलते हुए इसी रामपुर आश्रम में विश्राम करते थे। सभी संत महात्माओं के भोजन इत्यादि का प्रबंध चतुर्भुजी मंदिर के प्रबंधन के माध्यम से होता था। सेवा भाव से खुश होकर साधु सन्यासी साधुवाद देते हुए रामपुर धाम से तपस्थली नैमिषारण्य के लिए प्रस्थान करते थे। दिव्य आत्माओं के संगम से उनके चरण प्रताप से यह रामपुर नगरी धन धन को प्राप्त होती थी। जनमानस को साधु दर्शन से पुण्य लाभ मिलता था।
वर्तमान में इस स्थान के चमत्कार और अलौकिक दृश्य को ध्यान में रखकर रमता राम चतुर्भुज मंदिर में जगह-जगह से हजारों हजारों की संख्या में भक्तगण अपनी मनोकामनाओं को लेकर भगवान चतुर्भुज के दरबार में आते हैं और यहां के चतुर्भुज मंदिर, रमता राम महराज, दिव्य सरोवर, परिजात वृक्ष, दिव्य कूप पर दीपक जलाते हैं और अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए व्रत रखते हैं।
अलौकिक चमत्कार के बाद लगने लगा मेला
उस अलौकिक चमत्कार के बाद यहां प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगने लगा, भक्तगण दूर दूर से यहां दिव्य सरोवर में स्नान एवं दीप प्रज्वलित करने के लिए आने लगे। महिला एवं पुरुष यहां तक की बच्चे भी जमीन पर लेट कर इस मन्दिर की परिक्रमा करने और चतुर्भुज भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। भक्तो के अथाह आगमन और आस्था के फलस्वरूप अब कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाला मेला रामपुर धाम ’रामपुर महोत्सव’ के नाम से 10 दिवसीय महोत्सव में बदल चुका है। अभी 6 नवंबर से 15 नवंबर 2022 तक अयोजित महोत्सव में लाखों की संख्या में भक्तगण दीप प्रज्वलित करने एवं दर्शन को पधारे तो वहीं दूसरी तरफ धर्मचक्रवर्ती, पद्मविभूष्ण, तुलसी पीठाधीश्वर, जगदगुरू रामानंदाचार्य, स्वामी राम भद्राचार्य जी महाराज ने रामपुर महोत्सव सांस्कृतिक मंच के उद्घाटन के बाद इस क्षेत्र का नाम रामपुर धाम रखने का खुले मंच से सरकार से आग्रह किया है।
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सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाला पारिजात वृक्ष |
इसके अलावा इस मन्दिर के दर्शन करने हेतु भोजपुरी सुपर स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ व सैकड़ो अति महत्वपूर्ण विभूतियां आई थी। वर्तमान में इस मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष युवा उर्जा एवम मन्दिर विकास को समर्पित चतुर्भुज मंदिर में अत्यधिक निष्ठा व विश्वास रखने वाले व्यक्तिव आनन्द मोहन दास एवं महंत फूल सिंह दास जी हैं।
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उपरोक्त वर्णित खबर स्थानीय लोकमत एवं आए भक्तगण द्वारा बताई गई जानकारी पर आधारित है।