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आस्था का केंद्र रमता राम चतुर्भुज धाम, जाने क्या है मान्यता

रमता राम चतुर्भुज धाम, बाराबंकी, जाहगीराबाद

सत्यबन्धु भारत, प्रेम विश्वकर्मा

बाराबंकी जिला धार्मिक व पौराणिक स्थलों के आधार पर अपना विशेष महत्व रखता है। यहां महाभारत कालीन धार्मिक स्थलों के प्रमाण मिलते हैं। महादेवा में स्थित शिव मंदिर, किन्तूर में कुंतेश्वर व पारिजात वृक्ष ,यह सब पांडवों द्वारा स्थापित बताए जाते हैं।कहा जाता है कि जब पांडव अपनी माता कुंती के साथ हस्तिनापुर से अज्ञातवास के लिए निकले तो वह सभी लोग कुछ समय के लिए इस वन क्षेत्र में आश्रय लेने के लिए रुके थे । उस समय इस वन क्षेत्र को वाराह वन के नाम से जानते थे, जो कालांतर में बाराबंकी हुआ।  महादेवा में पांडव द्वारा शिव मंदिर स्थापित किया गया था जो आज एक पवित्र स्थान है। यहां प्रत्येक वर्ष शिव मेला लगता है। यहां दूर-दूर से शिव भक्त गंगा जल चढ़ाने आते हैं। पांडव की माता कुंती के नाम से कुंतापुर या कुंतेश्वर था जो अब किंतूर नाम से प्रसिद्ध  है। यहीं पर पारिजात वृक्ष है।  यहां माता कुंती शिव जी की आराधना किया करती थी। यहीं पर पारिजात वृक्ष है।कहते हैं कि पारिजात वृक्ष अर्जुन द्वारा स्वर्ग से लाया गया था, इसके फूलों से माता कुंती भगवान शिव का अभिशेक किया करती थी। यह  सारे प्रमाण महाभारत काल के धार्मिक धरोहर हैं। लोकमत है कि बाराबंकी में ही स्थित सतरिख प्राचीन  कालखंड में सप्त ऋषि आश्रम हुआ करता था,जो अवध राज्य का गुरुकुल था। सिद्धौर में भगवान शिव का मंदिर  सिद्धेश्वर नाम से स्थापित है। कोटवा धाम मे संत शिरोमणि बाबा जगजीवन दास  का स्थान है।जो अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। इन सभी पावन और पवित्र  धर्म स्थलों पर प्रत्येक वर्ष धार्मिक उत्सवों का आयोजन होता रहता है।स्थानीय व सुदूर शहरो से भक्तों का आना जाना रहता है।



 इन्हीं ऐतिहासिक धार्मिक स्थानों में एक स्थान बाराबंकी जिला के थाना जहांगीराबाद क्षेत्र में रामपुर धाम है। यहां रमता राम चतुर्भुजी मंदिर विशाल प्रांगण में स्थित है।इस मंदिर का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है।अतीत में कुछ परिस्थितियां रही होंगी जो जनमानस के स्मृति पटल पर मंदिर की भव्यता व विशालता की स्मृतियां धूमिल होती गई।

 मंदिर के अवशेष, जर्जर बावली और  गुफाओं की जांच से पता चला है कि इस चतुर्भुज मंदिर  का निर्माण काल का  कई सौ साल पुराना है।सैकड़ों एकड़ में फैला विशाल चतुर्भुज मंदिर का परिसर  इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि प्राचीन समय में यह कितना प्रतिष्ठित और संपन्न रहा होगा। कहते है कि रामपुर धाम में स्थापित चतुर्भुज मंदिर का विस्तार सुदूर प्रांतों तक फैला था। इस चतुर्भुजी मंदिर से लगभग 360 मठ या गद्दीया संचालित होती थी। इस विशाल मंदिर की शाखाएं भारत के कोने कोने में फैली थी।रमता राम चतुर्भुजी मंदिर  चतुर्भुज साम्राज्य का केंद्र बिंदु  था।



 गोस्वामी तुलसी दास ने भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप  का वर्णन श्री रामचरित मानस की चौपाइयों में भी किया है।रामचरितमानस के बालकांड में भगवान विष्णु अपने चारों हाथों मे आयुध लेकर माता कौशल्या के समक्ष्य प्रगट हुए,।लेकिन माता  के कहने पर  अपना चतुर्भुज रूप तज कर शिशु बनकर रोने लगे --- लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा,निज आयुध भुज चारी ।। भूषन वनमाला नयन विशाला,शोभा सिंधु खरारी।।

 और अरण्यकांड में महर्षि अगस्त्य  के शिष्य सुतीक्ष्ण मुनि को भगवान राम ने चतुर्भुज रूप में दर्शन दिया । सुतीक्षण मुनि ने ज़ब राम का आगमन सुना तो खुशी से व्याकुल हो कर रास्ते में ही ध्यान लगा कर बैठ गए।भगवान राम ने उन्हें बार-बार जगाया पर वह न उठे। तब भगवान राम ने उनके हृदय में अपने चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन कराया -- मुनिही  राम बहु भांति  जगावा  ।  जाग न ध्यान जनित सुख पावा।। भूप रूप तब राम दुआवा । ह्रदय चतुर्भुज रूप दिखावा।।


 ऐसा ही वर्णन इस स्थान पर भी आता है कि भगवान विष्णु ने अपने भक्त का सम्मान रखने के लिए स्वयं भक्त के देह मे प्रवेश कर चतुर्भुज स्वरुप में दर्शन दिए। एक समय की बात है क़ि प्रयागराज से कुंभ स्नान करके साधु  महात्मा पैदल चलते चलते इसी आश्रम में पधारे।आश्रम मे भंडारे का प्रसाद परोसा जा रहा था तभी अचानक एक घटना घटित हुई। किवदंती है कि रमता राम चतुर्भुज मंदिर के पुजारी भंडारा प्रसाद परोस रहे थे, अचानक उनकी लंगोटी खुल गई लेकिन उन्होंने सेवा भाव में ही ध्यान केंद्रित रखा। सेवा भाव में भक्त  की तल्लीनता देखकर  भगवान चतुर्भुज उनके शरीर में लंगोटी को संभालने के लिए स्वयं समाहित हो गए,और दो हाथ  प्रगट किए और अपने परम भक्त की लंगोटी बाँधने लगे। संतों की सेवा प्रभावित नहीं होने दी। ऐसा अलौकिक दृश्य देखकर सभी साधु संत नतमस्तक होकर भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की जय-जयकार करने लगे।



संतो का कहना है कि साधु महात्मा प्रयागराज मे एक  माह का कुंभ प्रवास करते थे। प्रवास समाप्त होने के उपरांत वह सभी पुनः सिद्धि साधना के लिए तपस्थली नैमिषारण्य  के लिए प्रस्थान करते थे।वह सब दिव्य आत्माएं पैदल मार्ग चलते हुए इसी रामपुर आश्रम में विश्राम करते थे। सभी संत महात्माओं के भोजन इत्यादि का प्रबंध चतुर्भुजी मंदिर के प्रबंधन के माध्यम से होता था। सेवा भाव से खुश होकर साधु सन्यासी साधुवाद देते हुए रामपुर धाम से तपस्थली नैमिषारण्य के लिए प्रस्थान करते थे। दिव्य आत्माओं के संगम से उनके चरण प्रताप से यह रामपुर नगरी धन धन को प्राप्त होती थी।जनमानस को साधु दर्शन से पुण्य लाभ मिलता था।

 रमता राम चतुर्भुज मंदिर की मान्यता की बात करें तो जगह-जगह से हजारों हजारों की संख्या में भक्तगण आज भी कार्तिक पूर्णिमा  के दिन अपने सुख समृद्धि और भक्ति  के लिए यहां पर दीप प्रज्वलित   कर प्रभु से प्रार्थना करते हैं। अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए व्रत रखते हैं।



रमता राम चतुर्भुजी मंदिर की प्राचीनता एवं भव्यता की पहचान आज भी लक्ष्मण घाट अयोध्या में स्थित है। लक्ष्मण घाट पर चतुर्भुजी मंदिर है,जो अपनी प्रभुता, संपूर्णता का परिचय दे रहा है। यह विशाल चतुर्भुजी मंदिर मोहक और दर्शनीय है। प्राचीनतम गौरव है.। मंदिर के विश्रामालय बारादरी इत्यादि सब जीर्ण शीर्ण  अवस्था में हो गए हैं। इस मंदिर का प्रांगण बहुत विशाल है।यह कई एकड़ मे बना दूर तक फैला आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।

 लक्ष्मण घाट के चतुर्भुजी मंदिर के प्रमुख महंत बलराम दास के कथनानुसार रामपुर धाम का रमता राम चतुर्भुजी मंदिर   अपने कालखंड में 360 गद्दीयो या मठो का संचालन करता  था।  सनातन समाज के आश्रमों व मठों को क्रियान्वित करने व संचालन के लिए  लक्ष्मण घाट अयोध्या मे चतुर्भुजी मंदिर का निर्माण करवाया गया था। क्योंकि अयोध्या सभी तीर्थों का केंद्र बिंदु था । यह मंदिर  चतुर्भुजी मंदिर के नाम से लक्ष्मण घाट में प्रसिद्ध है।यहां दूर दूर भक्त जन दर्शन करने के लिए जाते हैं।

 भगवान विष्णु के चतुर्भुज नाम की शक्ति और मान्यता की तरफ नजर की जाए तो मध्यप्रदेश में ओरछा में भी चतुर्भुज मंदिर के  दर्शन होते हैं। भगवान राम आज भी यहां के राजा हैं.। यह एक ऐतिहासिक मंदिर है। इनकी कथा अति प्रचलित है। भगवान विष्णु का चतुर्भुज मंदिर एक ग्वालियर में भी स्थित है। चतुर्भुज मंदिर भारत में जगह जगह स्थापित है,जो भगवान विष्णु के ही स्वरूप  को समर्पित हैं। यह सभी पावन स्थान पवित्र और पूजनीय है।शक्ति एवं भक्ति के ऊर्जा स्रोत है आध्यात्मिक धार्मिक उन्नत के दिव्य साधना केंद्र है.।


 कालांतर के इस गौरवशाली इतिहास के बावजूद भी तमाम मंदिरों की भांति रामपुर धाम का यह चतुर्भुज मंदिर भी उपेक्षा का शिकार हुआ। लेकिन स्थानीय लोगों का इस मंदिर के प्रति  लगाव व श्रद्धा भक्ति में कोई कमी नहीं आई है। लोग आज भी इस पावन स्थल को पूजते  हैं। अपनी भक्ति और आस्था का दीप यहां प्रज्वलित कर उत्सव मनाते हैं।यह मंदिर अपनी दिव्यता,पौराणिक व ऐतिहासिक महत्ता को रखते हुए बाराबंकी जिला में अपना विशेष धार्मिक स्थान रखता है। चतुर्भुज मंदिर की विशेषताए  जन जन तक पहुंच रही है।स्थानीय एवं सुदूर भक्तों का जुड़ाव एवं लगाव बढ़ने लगा है।


 आनंद मोहन वर्तमान में चतुर्भुजी मंदिर के प्रमुख हैं। मंदिर का विस्तार व प्रचार प्रसार का कार्यभार अपनी निगरानी मे करवा रहे  है। दूरदर्शी आनंद मोहन कोटि-कोटि साधुवाद के पात्र हैं। मंदिर परिसर, प्रांगण व मंदिर  इत्यादि जो भी अस्त-व्यस्त अवस्था में था,उसे दर्शनीय व उपयोगी बना रहे हैं।अपने अथक प्रयास से धैर्य पूर्वक अपने कर्मठ सहयोगियों के साथ मिलकर चतुर्भुज मंदिर के उत्थान के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं।मंदिर के खेत खलिहान को बराबर कर खेती योग्य बनाना,पार्क में पेड़ लगवाना मेला उत्सव हेतु विशाल मंच का निर्माण करना पेयजल की व्यवस्था इत्यादि आनंद मोहन के द्वारा किया जा रहा है। आनंद मोहन ने  बिजली आपूर्ति हेतु मंदिर परिसर निजी ट्रांसफार्मर की व्यवस्था करवा दी है। आनंद मोहन की मंदिर के प्रति निष्ठा और लगन देखकर स्थानीय लोग अति प्रसन्न है।चतुर्भुजी मंदिर के सर्वांगीण विकास का जो संकल्प भाव है,वह सराहनीय है। जहां भगीरथ सा दृढ़ निश्चय हो  वहां भगीरथी का आकाशगंगा से आना  निश्चित हो जाता है। आनंद मोहन ने धर्म यज्ञ में कठिन परिश्रम की आहुति से जनमानस के स्मृति पटल पर अपनी धार्मिक छवि  अंकित की है। मंदिर को पुनः गौरवशाली भव्य विशाल बनाने का प्रयास निरन्तर किया जा रहा है। आने वाले समय में यह पावन स्थानऔर भी सुन्दर सुखद दर्शनीय स्थल के रूप में प्रतिष्ठित होकर गर्वित होगा।


  रामपुर धाम महोत्सव के नाम से यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन से 10 दिवसीय महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस कार्तिक मेले में लाखों की संख्या में भक्तगण अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।चतुर्भुजी मंदिर में माथा टेक कर अपने परिवार की सुख समृद्धि और खुशहाल जीवन की कामना करते हैं।रामपुर धाम महोत्सव की ख्याति दूर दूर तक है।इस महोत्सव में भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल ने भी अपनी हाजिरी लगाई है।इनके कार्यक्रम में लाखों की संख्या में भक्तजनों की भीड़ उमड़ी थी। खेसारी लाल ने कहा कि यह एक सिद्धि धाम है।यहां दर्शन करने से सब की मनोकामना जरूर पूरी होती है।सबको यहां उत्सव में जरूर आना चाहिए और भगवान चतुर्भुज महाराज का दर्शन करना चाहिए। ईश्वर की शरण मे कल्याण ही होता है। भोजपुरी गायक अरविंद अकेला( कल्लू )पावन धाम में अपनी प्रस्तुति करके आशीर्वाद प्राप्त किया है। गायक कल्लू अपार  भक्तों की भीड़ को देखकर बहुत खुश हुए और कहा रामपुर धाम मे प्रभु के दर्शन बार-बार करना चाहूंगा।  यह तो बहुत ही पुराना सिद्धि साधना धाम है। उत्सव में आकर प्रत्येक भक्त को भगवान चतुर्भुज  का आशीर्वाद  लेना चाहिए। इस 10 दिवसीय महोत्सव के प्रत्येक कार्यक्रम में लाखों भक्तों की संख्या की भीड़ उमड़ती है। शासन प्रशासन भी इस उत्सव में भरपूर सहयोग करता है। पार्किंग की व्यवस्था झूला और झांकी , दुकानदारों व अन्य व्यवस्थाओं का प्रबंध मेला कमेटी सुचारू रूप से करती है।

 आनंद मोहन द्वारा जब इस बार नेहा कक्कड़ सपना चौधरी व अन्य लोगों से संपर्क कर इस  स्थान की महत्ता एवं शक्ति के बारे में चर्चा की गई तो वह भी आने को तैयार हो गए। लेकिन कोरोनावायरस गाइडलाइंस के तहत केवल दीप प्रज्वलित करके कार्तिक मेले का आंशिक रूप से आयोजन किया गया।

 आनंद मोहन की तरह प्रत्येक नवयुवक को धर्मरत होकर अपनी परंपराओं और मान्यताओं में रुचि लेनी चाहिए। और अपने पौराणिक ऐतिहासिक मंदिर व स्मारकों  को देखकर गर्व के साथ उन्हें संरक्षित करने का विचार रखना चाहिए।