— संवाददाता विशेष, लखनऊ
लखनऊ के इंदिरा नगर स्थित आयुष्मान भारत - नगरीय हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, अमराई गांव में स्वास्थ्य सेवाएं अब आधुनिक तकनीक और योग्यता के नहीं, बल्किअदृश्य शक्तियों के भरोसे चल रही हैं।
केंद्र पर पिछले कई महीनों से न डॉक्टर हैं, न फार्मासिस्ट, न लैब टेक्नीशियन, और न ही कोई अन्य स्टाफ। लेकिन इसके बावजूद भी यहाँ "इलाज" जारी है – कैसे? इसका उत्तर शायद विज्ञान नहीं, कोई जिम्मेदार ही दे सकता है।
मशीनें धूल में लिपटीं, लेकिन "ऊर्जा" बरकरार!
जहाँ एक ओर खून-जांच, ब्लड प्रेशर और शुगर टेस्ट की मशीनें धूल से ढँकी हुई मौन साधना में लीन हैं, वहीं मरीजों को उम्मीद है कि शायद "मशीनों की आत्मा" ही उनका इलाज कर रही हो।
परिसर में सन्नाटा, लेकिन "ऊर्जाओं" की चहल-पहल
केंद्र के दरवाज़े खुले रहते हैं, कुर्सियाँ अपनी जगह पर सजी रहती हैं, और पंखे कभी-कभार चलते भी दिखते हैं – मानो अदृश्य स्टाफ अब भी अपनी ड्यूटी निभा रहा हो।
स्वास्थ्य केंद्र या ध्यान केंद्र?
स्थानीय निवासियों ने व्यंग्य करते हुए कहा, "अब यह आयुष्मान केंद्र कम, और योग ध्यान केंद्र ज़्यादा लगता है। यहाँ बैठो, आंखें बंद करो, और कल्पना करो कि डॉक्टर आपका इलाज कर रहा है।"
शिकायतों हुई पर सुनवाई नदारद
स्वास्थ्य विभाग में शिकायत की जा चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
स्थानीय लोगों ने बताया कि वेलनेस की उम्मीद है पर नतीजा अभी तक जस का तस है।
अब सवाल यह है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत करोड़ों का बजट मिलने के बावजूद अगर नगरीय हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर ही ‘गायब व्यवस्था’ का शिकार हैं, तो आमजन को स्वस्थ भारत का सपना कब और कैसे मिलेगा?
यह स्वास्थ्य केंद्र नहीं, अब व्यंग्य केंद्र बन चुका है।