आज के समय में मेडिटेशन को लेकर सबसे बड़ा मिथ यही है कि “मेडिटेशन मतलब दिमाग को खाली करना।”
असल में मेडिटेशन सोच रोकने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि सोच को देखने की अवस्था है।
हम दिन भर हजारों विचारों से घिरे रहते हैं। आंख बंद करते ही दिमाग और तेज़ दौड़ने लगता है। इसी कारण लोग कहते हैं — “मुझसे मेडिटेशन नहीं होता।”
जबकि सच यह है कि हर इंसान दिन में कई बार मेडिटेशन की अवस्था में जाता है —
जब वह पूरी तरह किसी स्वाद में डूब जाता है, किसी संगीत में खो जाता है या अचानक अपनी सांसों के प्रति सजग हो जाता है।
मेडिटेशन का अर्थ है — दृष्टा बनना, जज नहीं।
जो है, उसे वैसा ही देखने देना, बिना प्रोसेस किए।
भारतीय ग्रंथ विज्ञान भैरव तंत्र में 112 से अधिक ध्यान विधियाँ बताई गई हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि मेडिटेशन किसी एक आसन या तकनीक तक सीमित नहीं है।
यह जीवन जीने का तरीका है।
आज जब तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ रहे हैं, तब मेडिटेशन कोई लक्ज़री नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की ज़रूरत बन चुका है।

