मां जानकी व प्रभु राम के मिलन की लीलाओं को जीवंत करता है अमराई गांव का ऐतिहासिक धनुष यज्ञ—110वीं वर्षगांठ पर भव्य आयोजन
सत्यबंधु भारत— विशेष रिपोर्ट (लखनऊ)
लखनऊ : अवध राम के नाम से अनुप्राणित है तो लक्ष्मण नगरी मां जानकी की भी उसी भाव से जीवंत हो उठती है। मां जानकी और प्रभु श्रीराम के पावन मिलन की सूचना जन-जन तक पहुँचाने के लिए आयोजित होने वाला ऐतिहासिक ‘धनुष यज्ञ’ कार्यक्रम न केवल लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि लोक परंपरा, भक्तिभाव और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों का जीवंत महोत्सव है।
इसी परंपरा को अमराई गांव वर्ष 1915 से अक्षुण्ण रखे हुए है और आज 110 वर्षों के स्वर्णिम इतिहास में प्रवेश कर चुका है।
इस वर्ष भी आयोजन विशेष उत्साह, भक्ति और दिव्यता के साथ प्रारंभ अगहन सुदी सप्तमी से दशमी तक 27 नवंबर से 30 नवंबर तक आयोजित होगा । वर्षों से जिस भाव के साथ राजसी मंडप का निर्माण किया जाता है, वह इस रामलीला की सबसे अनूठी विशिष्टता बन चुकी है।
अमराई गांव की गलियों में मानो आज भी वही मिथिला बसती है—
जहाँ महाराज जनक का राजदरबार था,
जहाँ जनकपुरी की कन्याएँ उत्सव गीत गाती थीं,
और जहाँ धनुष यज्ञ के लिए समस्त राजाओं का आगमन होता था।
रामलीला मंच पर जनकपुरी का अद्भुत दृश्य, राजा जनक का तेजस्वी व्यक्तित्व, लक्ष्मण की तेजोमय मुद्रा, और स्वयंवर मंडप की राजसी सज्जा—यह सब इस बार और भी अधिक भव्य स्वरूप में दिखने वाला है। क्योंकि इस बार की रामलीला में एक महत्वपूर्ण विशेषता जुड़ी—
मंचन को और वास्तविक दिखाने के लिए डिजिटल बैकड्रॉप, उन्नत प्रकाश तकनीक, पारंपरिक संगीत के साथ आधुनिक ध्वनि गुणवत्ता, और चरित्रों के अनुरूप दिव्य वेशभूषा ने पूरी रामलीला को ‘अनुकरणीय उत्कृष्टता’ का दर्जा दिया।
110 वर्षों का जीवंत इतिहास—इतनी लंबी परंपरा सिर्फ निभाई नहीं जाती, पीढ़ियों द्वारा जी जाती है
अमराई गांव के वरिष्ठजनों के अनुसार यह रामलीला केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि ग्राम्य समाज का आध्यात्मिक उत्सव है।
यह वही आयोजन है जो दशकों से परंपरा, संस्कार और सदाचार की मशाल को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाता आया है।
इस वर्ष ‘विशेष आयोजन वर्ष’ होने के कारण—
55 मातृशक्तियों द्वारा 110 बार हनुमान चालीसा पाठ,
स्थानीय विद्यालयों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ,
धनुष यज्ञ की विशेष झांकी,
और पारंपरिक व लोक-नृत्यों की मनोहारी प्रस्तुति—पूरे परिसर को राममय बनाने वाली है।
सांस्कृतिक चेतना को जीवित रखने का अनोखा उदाहरण
गांव के युवा, महिलाएँ और वरिष्ठ नागरिक—सब अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं।
किसी का काम मंच सजाना,
किसी का वेशभूषा संभालना,
किसी का संवादों की प्रैक्टिस कराना,
और किसी का व्यवस्था देखना—
सभी मिलकर यह उदाहरण देते हैं कि परंपरा सामूहिक शक्ति से जीवित रहती है।
धनुष उठाने का वह दिव्य क्षण—जब सभागार भावविभोर हो उठता है
जब मंच पर भगवान श्रीराम ने भगवान शंकर के धनुष को सहजता से उठाते हैं, और वह टूट जाता है तो परंपरागत शंखध्वनि, ढोल-नगाड़े और जयकारों से पूरा परिसर गूंज उठता है
दर्शकों की आँखों में श्रद्धा, आनंद और भाव के सैलाब को रोकना कठिन हो जाता है।
यह दृश्य केवल मंचन नहीं होता है
यह वह क्षण था होता है जहां भक्ति और नाट्य कला एकाकार हो जाती है।
दर्शकों की अभूतपूर्व भीड़ और श्रद्धा
इस वर्ष दर्शकों की संख्या सामान्य से कहीं अधिक होने वाली है।
कई लोग दूर-दराज़ से केवल एक झलक पाने आने वाले हैं।
क्योंकि अमराई गांव का धनुष यज्ञ अब केवल लखनऊ का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का सांस्कृतिक आकर्षण बन चुका है।
समापन दिवस की भव्य तैयारी
आयोजन समिति के अनुसार अंतिम दिवस पर—
● राजतिलक झांकी,
● पुष्प वर्षा,
● राज्याभिषेक मंडप
● व भक्तिरस की अनोखी झांकी
विशेष आकर्षण का केंद्र होंगी। साथ ही राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों द्वारा रात्रि में नाटक प्रस्तुत किए जाएंगे।
इसके साथ ही ‘परंपरा—भविष्य की नींव’ विषय पर एक विशेष संवाद भी होगा, जिसमें विद्वान वक्ता रामायण की आधुनिक प्रासंगिकता पर विचार रखेंगे।
संक्षेप में—अमराई गांव का धनुष यज्ञ केवल लीला नहीं, सांस्कृतिक धरोहर है
यह वह स्थान है जहाँ—
परंपरा समय को मात देती है,
भक्ति आधुनिकता को सुशोभित करती है,
और ग्रामीण भारत अपनी संस्कृति को गर्व से आगे बढ़ाता है।
110 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत, दिव्य और प्रेरक है—
जितनी जनकपुरी के उस प्रथम स्वयंवर के दिन थी।




