अपर्णा मिश्रा, अध्यक्षा सद्भावना समिति |
सबसे पहले हमें नारी के माँ रूप का सम्मान करना होगा
मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।
किंतु बदलते समय के अनुसार संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं जिसका उदाहरण वृद्घाआश्रम के रूप में देखा जा सकता है परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।
अगर आजकल की महिलाओं पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये महिलाये आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है । विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। यहाँ तक यह कहना भी अनुपयुक्त नहीं होगा कि नारी को ससक्त करने की आवश्यकता ही नहीं है वह सदियों से सशक्त है, आवश्यकता है तो सिर्फ़ उसे उत्साहित करने की और मंच देने की. इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।
नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है। उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है। इस नजरिए से देखा जाए, तो नारी सदैव पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधिक जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्माननीय है।
विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारियां आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। वे कोल्हू के बैल की तरह घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधिकारी बनाता है।
बच्चों को संस्कारित करने का काम मां के रूप में नारी द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है।
देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें 'चतुर महिला' तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आखिर में यही कहना है कि स्त्री एक ऐसी गुरू हैं जो टूटे हुए शर्ट के बटन से लेके व्यक्ति के टूटे हुए आत्मविश्वास तक को जोड़ने की कला जानती हैं।
कोई भी देश यश के शिखर पे तब तक नहीं पहुँच सकता जब तक देश की महिला, पुरुष से कंधे से कंधा मिला कर ना चले। इस लिए हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान,आर्थिक आज़ादी के लिए अवसर, आत्मनिर्भर जो ने का मौका किसी भी स्थिति में दिया जाना चाहिए। शेष नारी में इतनी शक्ति और सहनशीलता है कि वह ऐसा कुछ भी नहीं जो वह कर न सके या करके न दिखाया हो.