उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर एक ऐसी स्थिति है जो चुपचाप हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाती है और जब तक इसके लक्षण स्पष्ट होते हैं, तब तक शरीर के भीतर बहुत कुछ बिगड़ चुका होता है। यही कारण है कि इसे ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है। इस बीमारी का सबसे बड़ा खतरा यही है कि यह लक्षणों के बिना शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकती है – विशेष रूप से हृदय, मस्तिष्क, किडनी और आंखों को।
आज भारत में जीवनशैली में तेजी से आ रहे बदलावों, खानपान की खराब आदतों और बढ़ते मानसिक तनाव के कारण उच्च रक्तचाप के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि यह केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं रह गई है, बल्कि युवाओं, यहां तक कि किशोरों में भी इसके लक्षण देखने को मिल रहे हैं। अत्यधिक नमक का सेवन, तला-भुना खाना, प्रोसेस्ड फूड की बढ़ती आदतें, शारीरिक गतिविधि की कमी, अनियमित दिनचर्या, नींद की कमी और तनाव – ये सभी कारक मिलकर इस समस्या को बढ़ावा दे रहे हैं।
खास बात यह है कि उच्च रक्तचाप और पोषण के बीच गहरा संबंध है। जो आहार हम प्रतिदिन ग्रहण करते हैं, वह हमारे रक्तचाप को नियंत्रित करने या बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाता है। असंतुलित भोजन जिसमें अत्यधिक नमक, चीनी और वसा होती है, वह रक्तचाप को बढ़ा सकता है। वहीं दूसरी ओर, यदि हम ताजे फल, सब्जियों, साबुत अनाज, दालों, कम वसा वाले डेयरी उत्पादों और कम नमक वाले खाद्य पदार्थों को नियमित रूप से अपने आहार में शामिल करें, तो हम उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं। पोटैशियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे केला, पालक, टमाटर, गाजर और खीरा शरीर में सोडियम के प्रभाव को संतुलित करते हैं और रक्तचाप को प्राकृतिक रूप से घटाने में मदद करते हैं।
भारत में एक औसत व्यक्ति प्रतिदिन 9 से 11 ग्राम तक नमक का सेवन करता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश है कि प्रतिदिन केवल 5 ग्राम यानी लगभग एक चम्मच नमक ही सेवन किया जाए। नमक का अधिक सेवन न केवल हृदय और रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालता है, बल्कि लंबे समय में यह उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक और किडनी की बीमारियों का कारण बन सकता है। इसलिए, यह जरूरी है कि हम अपनी रसोई में धीरे-धीरे नमक की मात्रा कम करें, पैकेज्ड नमकीन चीजों का सेवन घटाएं और भोजन में स्वाद के लिए मसाले, नींबू, लहसुन और हर्ब्स जैसे प्राकृतिक विकल्पों का प्रयोग करें।
लेकिन केवल आहार ही पर्याप्त नहीं है। शारीरिक गतिविधि भी उच्च रक्तचाप की रोकथाम और नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि हम प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट की तेज चाल से सैर करें, योग या हल्का व्यायाम करें, तो यह न केवल हमारे रक्तचाप को नियंत्रित करेगा बल्कि हृदय को मजबूत बनाएगा, वजन को संतुलित रखेगा और तनाव को भी कम करेगा। विशेष रूप से प्राणायाम और ध्यान जैसे अभ्यास मानसिक तनाव को दूर करने और शरीर में हार्मोनल संतुलन बनाए रखने में बेहद सहायक होते हैं।
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में तनाव और नींद की कमी भी उच्च रक्तचाप के छिपे हुए कारण हैं। जब व्यक्ति तनाव में होता है तो शरीर में कोर्टिसोल और अन्य तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे धमनियां संकुचित होती हैं और रक्तचाप बढ़ता है। इसी तरह, अगर शरीर को पर्याप्त नींद नहीं मिलती है तो उसका असर सीधे ब्लड प्रेशर पर पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में ऐसे तरीके शामिल करें जो हमें तनाव से दूर रखें – जैसे मेडिटेशन करना, मनपसंद संगीत सुनना, परिवार के साथ समय बिताना, किताबें पढ़ना या प्रकृति में समय बिताना। साथ ही, 7 से 8 घंटे की नींद लेना भी शरीर को पूर्ण विश्राम देता है और रक्तचाप को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है।
उच्च रक्तचाप से बचाव का सबसे सरल तरीका है समय-समय पर रक्तचाप की जांच करवाना। चूंकि इस बीमारी में शुरुआत में कोई लक्षण नहीं होते, इसलिए नियमित जांच ही इसका सबसे प्रभावी बचाव है। हर व्यक्ति को, विशेषकर 30 वर्ष की आयु के बाद, हर छह महीने में एक बार ब्लड प्रेशर की जांच अवश्य करानी चाहिए। अगर किसी के परिवार में पहले से हृदय रोग, डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर का इतिहास है, तो सतर्क रहना और जांच को नजरअंदाज न करना और भी जरूरी हो जाता है।
इस विषय पर बात करते समय एक और महत्वपूर्ण पहलू है ,पूरे परिवार और समाज की सामूहिक जिम्मेदारी। उच्च रक्तचाप से लड़ाई केवल एक व्यक्ति की नहीं, पूरे घर की होती है। यदि परिवार में कोई एक सदस्य स्वस्थ जीवनशैली को अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह दूसरों को भी प्रेरित कर सकता है। बच्चों को बचपन से ही संतुलित आहार, कम नमक खाने और शारीरिक गतिविधियों की आदत डालनी चाहिए। परिवार में एक साथ वॉक पर जाना, योग करना या हेल्दी रेसिपीज़ आज़माना – यह सब न केवल सेहत के लिए अच्छा है, बल्कि आपसी जुड़ाव भी बढ़ाता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि उच्च रक्तचाप को केवल दवाओं से नहीं रोका जा सकता, बल्कि इसे सही समय पर जागरूकता, भोजन में बदलाव, तनाव प्रबंधन और सक्रिय जीवनशैली से काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी थाली से शुरुआत करे – थोड़ा कम नमक, थोड़ा ज्यादा रंग (फल-सब्जियों से), थोड़ी अधिक हरियाली और थोड़ा समय खुद के लिए।
बल्कि यह एक अवसर है अपनी आदतों को दोबारा देखने का, नई जीवनशैली की ओर बढ़ने का और खुद के साथ-साथ अपने परिवार को भी स्वस्थ रखने का। अगर हम अपने दिल की सुनें, तो यह खामोश दुश्मन हमारी जिंदगी में कभी घुसपैठ नहीं कर पाएगा।
Disclaimer - यह लेख केवल सामान्य जानकारी और जन-जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। इसे किसी प्रकार की चिकित्सकीय सलाह, निदान या उपचार का विकल्प न समझें। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए पंजीकृत चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें। पोषण संबंधी सुझावों के लिए केवल योग्य डाइटीशियन या न्यूट्रिशनिस्ट से संपर्क करें, क्योंकि सभी व्यक्तियों की पोषण ज़रूरतें अलग-अलग होती हैं।
![]() |
By Ranu Singh Community Nutritionist Founder – Nutrition Punch National Executive Committee - Member IAPEN India Chief Program Officer – Community Nutrition Core Group, IAPEN India |
आप भी सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अपनी लेख, कविता, कहानी किसी भी खबर के लिए आज ही संपर्क करें या अपने ब्रांड के प्रमोशन के लिए संपर्क करें: 7905701473